“ऐ-वक़्त”
जब ज़िंदगी दिल से
जिया करते थे..!
जब लबों पे बस हसी
लिए फिरते थे…!!
“ऐ-वक़्त” वो चन्द हसीं के
लम्हात हमे लौटा दे..!!!
जब न थी खबर ज़माने की,
बस खुद मे ही खोए रहते थे..!
जब थक के सारा दिन,
रात को मस्त सोए रहते थे…!!
“ऐ-वक़्त” वो सुकून के चन्द
रात हमे लौटा दे…!!!
जहाँ न दर्द-ए-गम की
जगह थी कोई,
जहाँ न ज़ख़्मों का
कोई ठिकाना था..!
जब झगड़ते थे उसी पल,
फिर अगले पल मिल जाना था…!!
“ऐ-वक़्त” झगड़ने का फिर से
वो जज़्बात हमे लौटा दे…!!!
“ऐ-वक़्त” वो “बचपन” हमे लौटा दे..!!!
…..इंदर भोले नाथ…..
अति सुन्दर भाव व शब्द रचना.