कुछ पल और रुक “ऐ-ज़िंदगी”…….
थोडा और जी लूँ…
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जो ख्वाब अधूरे रह गये,
उन्हे पूरा करने दे….
आँखों मे रंग चाहत के,
कुछ और भरने दे….
हसरतों के बुझे चिरागो को,
कुछ और जलने दे….
ख्वाब सुनहरे पलकों पे,
कुछ और पलने दे….
इन बुझते चिरागो को,
कुछ और जलने दे….
बिखरे टुकड़ों मे पड़ा जो,
अल्फाज़ों का काफिला….
उन्हे मुकम्मल-ए-किताब तो कर लूँ,
कुछ पल और रुक “ऐ-ज़िंदगी”,
थोडा और जी लूँ…
बुझा नहीं है प्यास
जाम-ए-ज़िंदगी से….”इंदर”,
दो घूँट और पी लूँ….
कुछ पल और रुक……ऐ-ज़िंदगी
थोडा और जी लूँ….
………………..Acct- इंदर भोले नाथ …..(IBN)
बुझा नहीं है प्यास
जाम-ए-ज़िंदगी से….”इंदर”,
दो घूँट और पी लूँ….
कुछ पल और रुक……ऐ-ज़िंदगी
थोडा और जी लूँ….
bahut hi khub likha hai…kya baat hai
bahut-bahut shukriya aapka sagar ji
व्यक्ति की जीवन लालसा कभी पूर्ण नही हो पाती इस संदर्भ को अच्छे शब्दों में संजोया है !! बहुत अच्छे !!