जब ग़म के बादल मंडराए
नैना सावन से भर आये
तब पीड़ा का बीज बनाकर
एक उपवन में बो देता हूँ
और फिर थोड़ा रो लेता हूँ
ग़म का बादल छंट जाता है
बोझ हृदय का घट जाता है।
अश्रुधार का अध्यारोपण
पीड़ा का यह पुष्प निरूपण
ग़म के काँटों का आश्रय ले
खुशबू के संग खिल जाता है।
मन बिछड़े आनंदों से नित
हंसकर जैसे मिल जाता है।
………….
देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”
वाह अत्यंत खूबसूरत रचना है. आपकी प्रेम भावनाओं की सच्चाई और गहराई दर्शाती है
Words selection is too good…..
यथार्थ जीवन दर्शन को प्रस्तुत करती खूबसूरत रचना ………बहुत अच्छे देवेन्द्र जी !!
देवेंद्र प्रताप वर्मा जी हमारे पूर्वजों ने हमें जो गुर दिए आप का उनपर अध्ययन, आप की कविता में झलकता है । बहुत बहुत धन्यवाद
सभी का आभार।प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद।