मधु कल्पना हो…
तुम ख्यालों की मेरी मधु कल्पना हो |
तुम सवालों से सजी नव अल्पना हो ||
रंग तुम हो तूलिका के
काव्य का हर अंग हो |
काव्य-स्फुरणा से तू,
मन में उठी तरंग हो |
तुम रचयिता मन की,
सुन्दर औ सुखद सी प्रेरणा |
तुम हो रचना धर्मिता ,
रस भाव की उत्प्रेरणा |
काव्य भावों से भरे ,शुचि-
ज्ञान की तुम व्यंज़ना |
मन बसी सुख-स्वप्न सी ,
भावुक क्षणों की संजना |
तुम चलो तो चल् पड़े संसार का क्रम |
तुम रुको थम जाय सारा विश्व-उपक्रम |
तुम सवालों से सजी मन-अल्पना हो |
तुम ख्यालों की मेरी मधु कल्पना हो ||
जलज-दल पलकें उठालो ,
नित नवीन विहान हो |
तुम अगर पलकें झुकालो,
दिवस का अवसान हो |
तुम सृजन की भावना ,
इस मन की अर्चन वन्दना |
तुम ही मेरा काव्य-सुर हो,
तृषित मन की रंजना |
तुम ज़रा सा मुस्कुरालो,
मुस्कुराए ये जहां |
तुम ज़रा सा गुनागुनालो ,
खिलखिलाए आसमां |
तुम बनालो मीत तो खिल जाय तन मन |
तुम छिटक दो हाथ तो हो विश्व अनमन |
तुम ख्यालों की मेरी मधु कल्पना हो |
तुम सवालों से सजी , नव अल्पना हो ||
गीत बन गए ..
दर्द बहुत थे
भुला दिए सब,
भूल न पाए
वे बह निकले-
कविता बनकर
प्रीति बन गए |
दर्द जो गहरे
नहीं बह सके,
उठे भाव बन
गहराई से ,
वे दिल की-
अनुभूति बन गए |
दर्द मेरे मन मीत बन गए,
यूं मेरे नवगीत बन गए ||
भावुक मन की
विविधाओं की,
बन सुगंध वे-
छंद बने, फिर-
सुर लय बनकर
गीत बन गए |
भूली-बिसरी
यादों के उन,
मंद समीरण की
थपकी से,
ताल बने –
संगीत बन गए |
दर्द मेरे मनमीत बन गए,
यूं मेरे नवगीत बन गए||
श्याम जी डोनर रचनाएँ उत्तम हैं
धन्यवाद शिशिर जी
श्याम जी दोनो रचनाएँ उत्तम हैं