एक ख्वाब सखी तू सुन मेरा,
कल रात जो देखा था मैंने,
एक चीख़ इश्क़ की सुनकर के,
दिल बेबसी से लगा रोने,
एक गोरी रोतीथी प्रेमी पर,
आँखें जो अपनी मींचे था,
दुख तो बस इस बात का था,
वो आज कब्र के नीचे था,
उस गोरी को होश न था,
वो तो बस रोती जाती थी,
प्यार तेरा अब समझी हूं,
वो प्यार की कसमें खाती थी,
जिस सूरत पर सारी दुनिया,
अपनी जान मिटाती थी,
उस पर न रुकने वाली धारा,
अश्कों की बहती जाती थी,
फिर एक आवाज़ अचानक से ,
कानों में मेरे गूंज उठी,
उस प्रेमी की वो सुस्त कब्र,
न जाने कहाँ से बोल उठी,
” जो उम्र तक मेरे लिए एक बार मुस्कुराए नहीं,
वो आज मेरी कब्र पर अश्क़ बहाये जा रहे हैं,
जिन्होंने लाख के अपने कभी नैना दिखाए नहीं,
वो मोती बेशकीमती लुटाए जा रहे हैं,
जिन्होंने प्यार का मतलब हमसे एक बार समझा भी नहीं,
वो आज हमको प्यार उनका समझाये जा रहे हैं,
जब ज़िंदा था तो हसे नहीं न हसाया अपने दिलबर को,
जब ज़िंदा था तो हसे नहीं न हसाया अपने दिलबर को,
अब खुद भी रो रहे हैं, मुझे रुलाये जा रहे हैं।
”
प्रेम के इज़हार का नायाब स्पष्टीकरण बखूबी पेश किया … बहुत खूब अंकुर !!!!
आपका धन्यवाद sir, दरअसल जब दिल से बात जुबां पर आती है तो कागज़-कलम लेकर तैयार रहना ही पड़ता है।
बहुत सुन्दर ………………………
आपका दिल से धन्यवाद जनाब।
Very very Nice Ankur your poem