थोड़ा कमतर थोड़ा बेहतर होता है
लेकिन हर इन्सान बराबर होता है !
अपना बनकर जो भी धोखा देता है
बुज़दिल होता है वो कायर होता है !
शेर ग़ज़ल के सब मक़बूल नहीं होते
जो होता है वो तो मुक़र्रर होता है !
जिसके दिल में दर्द नहीं अहसास नहीं
फूल नहीं वो इंसा पत्थर होता है !
ज़र्रा अपनी मेह्नत और मशक्कत से
एक दिन वो चमकीला गौहर होता है !
जिसके आगे सागर सहरा कुछ भी नहीं
वो ही इक दिन मील का पत्थर होता है !
काम नहीं है तीरों का तलवारों का
प्यार तो एटम बम से बेहतर होता है !
GAZAL,BY SHAYAR SALIMRAZA REWA
9424336644 , 9981728122
बहुत ही अच्छी कविता लिखा है आपने “सलीम जी”
आसमा जी
आपकी इनायत के लिए शुक्रिया
विभिन्न पहलुओ पर अच्छा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, बहुत अच्छे सलीम रज़ा !!
नवजिश आदरणीय डी. के. साहब
चौथा, छठा और सातवां शेर अद्भुत हैं सलीम जी.
शिशिर जी आपकी इनायत के लिए शुक्रिया