(सुदामा)
द्वारिका जाहु जू द्वारिका जाहु जू, आठहु जाम यहै झक तेरे।
जौ न कहौ करिये तो बड़ौ दुख, जैये कहाँ अपनी गति हेरे॥
द्वार खरे प्रभु के छरिया तहँ, भूपति जान न पावत नेरे।
पाँच सुपारि तै देखु बिचार कै, भेंट को चारि न चाउर मेरे॥२३॥
यह सुनि कै तब ब्राह्मनी, गई परोसी पास।
पाव सेर चाउर लिये, आई सहित हुलास॥२४॥
सिद्धि करी गनपति सुमिरि, बाँधि दुपटिया खूँट।
माँगत खात चले तहाँ, मारग वाली बूट॥२५॥
दीठि चकचौंधि गई देखत सुबर्नमई,
एक तें सरस एक द्वारिका के भौन हैं।
पूछे बिन कोऊ कहूँ काहू सों न करे बात,
देवता से बैठे सब साधि-साधि मौन हैं।
देखत सुदामा धाय पौरजन गहे पाँय,
कृपा करि कहौ विप्र कहाँ कीन्हौ गौन हैं।
धीरज अधीर के हरन पर पीर के,
बताओ बलवीर के महल यहाँ कौन हैं?॥३०॥