ज़िन्दगी की किमत बहुत काम है यहां
इंसानियत सिर्फ एक शब्द है जहां
खुदगर्ज़ी सिर्फ कुत्ते मे दिखती है
चन रुपयो के लिए खाकी बिकती है
सुंदरता सिर्फ चेहरे पर है
मन सबके काले है
दुनिया उन्ही से चलती है
जो पैसे वाले है
चीजो की किमत सुनी थी अब इंसानो की भी लगती है
थोड़े थोड़े पसो मे औरतो की इज़्ज़त बिकती है
छोटे छोटे बच्चों से बीख जहां मंगवाई जाती है
उस देश मे नेताओ की लाखो की मुर्तिया आती है
आम आदमी पिस्ता है
टूटता है फिर भी खुद को घिसता है
दो रोटी की बुख मिटाने
लाखो के दखे खाता है
तब कहीं जाकर वो दो पल का चैन पाता है
इधर जाये या उधर जाये
कहाँ जाये जहां मन को शांति मिल जाये
कभी मंदिरो मे ढूंढो
कभी मस्जिद मे
कभी कैलाश चला जाये
तो कभी मक्का मदीना छु आये
पर जो किया ही इंसान का हो तो
तो उसे भगवान भी कैसे मिटाये
मोहित राजपाल
अच्छी रचना है. कृपया वर्तनियों की अशुद्धियों पर ध्यान दे.
धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया का shishir Ji ।अगली रचना में आपकी बात का ध्यान रखूंगा।
सुन्दर अभिव्यक्ति…बाकी शिशिर जी का सुझाव सरहानीय है !
अपने समय निकला रचना को पढ़ने को इसके लिए धन्यवाद।आपका और शिशिर जी के सुझाव ध्यान रखूंगा।बेहद खुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया जानकर।