सोंचो कि सोंच सोंच कर कितना सुलझ सके हो
उलझन को सुलझाने हेतु फिर उलझ चुके हो
कितने ही चित्र बनते बिगड़ते हैं दिल दर्पण में
फिर क्यों प्रियतम का मृग ही लुभाता है चितवन में
हो भले जीवन विषमताओं से भरा दलदल
मन भूल जाता है कष्ट सारे देख खिला कमल
इक हसीन ख्वाब विराने में भी बहार ले आती है
व्याकुल आत्मा गुलिस्तान में भी तन्हा रह जाती है
हर दुखी सोंच बोता है केवल दुख को
सकारात्मक सोच ही जन्म देती है सुख को
जीवन गर सुख दुख का ताना बाना है
जीत अपने विचारों पर हमें पाना है
हर विचार सिर्फ उस ब्रह्म पर स्थिर होगा
मोह माया द्वेष नहीं सत्य निष्ठा चिर होगा
सोंचो हर सोंच में जब सिर्फ राम होंगे
हर जीवन आनंद के पावन धाम होंगे
Very nice thoughtful and spiritual work
अति सुंदर उत्तम जी,
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !! आने वाला वर्ष आपके लिए मगलमय हो !!