हे
प्राण
निष्ठुर
आगमन
विचित्र माया
अद्वितीय कष्ट
कलेषित है काया।
ये
मोह
खण्डित
छूटी बाधा
आत्मसात तू
जग प्रज्वलित
परमात्मा लीन तू।
दो
चक्षु
कपाट
बुरा भला
निर्णायक हो
ध्यानमग्न कर
परमार्थ कर्म जो।
हो
आत्म
बोध से
मेल पूर्ण
विलक्षण सी
प्रज्वलित भूति
महिमा अमर सी।
अच्छा शब्द संयोजन अमितु जी ..