Homeअज्ञात कविमानव बढत मानव बढत गोपू चार्ली अज्ञात कवि 24/12/2015 No Comments तख्त तेरा ताज तेरा, चिर विजित आकाश तेरा, धरा पर ऊँचाईयाँ बहुत पा ली, अब क्षितिज को इन्तजार तेरा, मूढ-मन मानव को आस है तुमसे, फिर से लायेगा वही सुनहरा सवेरा, मत ठहर इस नदिया की शांत लहर पर, अविजेय समन्दर के ह्रदय मेँ डाल डेरा। Tweet Pin It Related Posts हम” बन जाए – अनु महेश्वरी भीड़ मे खो जाने दो मन ! About The Author गोपू चार्ली Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.