वक़्त के साथ हक़ भी बदल जाता है।
अग़र ज़ज़्बा हो तो नतीज़ा बदल जाता है।।
ज़ो दिल में ख़्वाहिश है माँ-बाप को साथ रखने की।
तो कैसा हक़, क़ैसी बंदिशे, हौसलों से तो क़ानून बदल जाता है।।?
ये वक़्त का ही तो फेर है।
कि ज़िन्दगी के मायने बदल देता है।
जिन्हें कभी ना छोड़ने की खायी थी कसमें।
वो रेत की तरह हाथ से फ़िसल जाता है।।?
रेत की ख़्वाहिश क्यों करते हो।
समुंदर को ही दिल में उतार लो।।
कोशिश करोगे तो वक़्त को मात दे ही दोगे।
बस एक बार दिल से नया आग़ाज़ करने को ठान लो।।?
समुंदर की ख़्वाहिश रखोगे,
तब कहीँ किनारे नसीब होंगे।
वरना यूँही उमर कट जायेगी,
सिर्फ़ काँटों भरे नज़ारे नसीब होंगे।
दुआ कर ख़ुदा से तुझे हौंसला मिले,
हौसलों की बदौलत ही मंज़िल नसीब होंगे।।?
sundar rachna ,sundar prayash.
Shukriya Narendra ji….
बेहतरीन ख्यालात पेश किये है जनाब ….. बहुत अच्छे !!
बहुत बहुत शुक्रिया आपकी इस हौंसला अफ़ज़ाई के लिए।।।।।