गेहूॅ की बालियां
सरसो के फूल पीले पीले
मटर के छिमी गूच्छे गूच्छे
आम के मोजर लगते कितने अच्छे
पछुआ सिहराती गात छू कर मधुर
कोयल लगाती डाल पर असंख्य कूकें
मुरझाए चेहरे खिलने लगे
शोखियों के बान चलने लगे
अरे ये कौन आया कांधा की नगरी
वातावरण को मोहक मनभावन करता
कहीं ये बसंत तो नहीं
जो पिछले साल इसी भाॅति आया था।