तुम तो अदावत को हवा देते रहे बरसों तलक
मेरे दिल तो तुम्हारे वास्ते बस प्यार था ।
तुम ही रफ्ता रफ्ता दूर मुझसे हो गये
मुझको भला कब तेरी सानिध्य से इंकार था ।
गर मैं नासमझ था तो तुम्ही समझा देते
कि वृथा ही मैं तुम्हारे प्यार मे बेजार था ।
दिल निकालकर मैंने तेरे आगे रख दिया
वह तुम्हारे वास्ते एक रोज का अखबार था ।
बस पलट लिए कुछ सफे और जान लिया “राज“
कि ये सच्चा प्यार नही घाटे का व्यापार था ।
राज कुमार गुप्ता – “राज“
Bahut sunder rachna Rajkumar jee.
बहुत बहुत शुक्रिया शिशिर जी ।
हिन्दी साहित्य whats up group me आपका स्वागत है…..for joining give me your mob.no. in ९१५८६८८४१८
My mob no +66845588357