अफसानों में था मै
और मुझमे सारा अफ़साना था
मैंने भी मोहब्बत की थी कभी
मै भी तो कभी दीवाना था।
अरमानों के नन्हे नन्हे
क़दमों की आहट सुनता था
और फिर चुपके से धीरे से
सपनों के धागे बुनता था
इंद्रधनुष सी रंग बिरंगी
चादर में लिपटी रातें थी
और उन रातों में सिमटा
दिल का नाजुक आशियाना था।
ना पायल की छमछम थी
ना गीतों की माला थी
ना चपल चंचला यौवन की
ना वो कोई मधुबाला थी
मेरे नैनों में छिपकर जो
मुझसे ही नैन चुराती थी
नित सपनों की पगडण्डी पर
बस उसका आना जाना था।
कभी घंटो भीगे बारिश में
कभी दिन भर धूप में खड़े रहे
कभी पग डग मग होने तक
चलते रहने पर अड़े रहे
फूल किताबों में कितने
अरमां कितने सुबके दिल में
कितने मधुमय सी रातों में
जागे और सोये पड़े रहे
नित लाख जतन से नैनों को
बस एक झलक ही पाना था।
है विचित्र अनुबंध प्रेम का
मन जिसमे था भरमाया
न उसने कभी कहा कुछ
न मै उससे कुछ कह पाया
मेरा जो कुछ था मुझमे
और जो कुछ भी था रह पाया
जो कहती एक बार अगर तो
सब उसका हो जाना था।
आज कहां वो मै ना जानू
और कहां मै वो ना जाने
किसी मोड़ पर भेंट हुई यदि
हो सकता है न पहचाने
पर जिस प्रेम की अंजलि ले
मै नित्य स्नेह रस बाँट रहा
वो भी उसकी धुन में
रचती होगी कितने अफ़साने
वो भी क्या दिन थे जिनको
आखिर गीतों में ढल जाना था।
……………….देवेन्द्र प्रताप वर्मा”विनीत”
Fantasting g khooob likha hai ati sunder