धूल का काम है….
जमना/चिपकना/बैठ जाना
कभी यहाँ…कभी वहाँ…कभी ऊपर…
कभी नीचे…
प्रत्येक
दृश्य वस्तुओं को…
धूमिल कर जाना…
स्वच्छ/साफ
चीजों को सदा
अपनाना…….
आज
संसार में….चारो तरफ…
धूल ही धूल है….
दिखाई नहीं देता….
तो पूछिए?
जिनका…….
जिस्म फूल है….
प्राचीन काल से….
आधुनिक काल तक
मैंने…..
धूल भरी
जिन्दगी देखी…..
पहले….
अश्वों/शूरवीरों….द्वारा….
उड़ाई गई धूल….
आज….
परमाणु…
विस्फोटित धूल…………
रवि सिंह स्वाती नागपूर
वर्तमान परमाणु विसंगति को एक सार्थकरूप से उठाने के लिए धन्यवाद।