नहीं जरूरत इन अपनो की,
जिनमें लोगों का ख्याल न हो।
नहीं जरूरत इस जीवन की,
जिनमें अपनों का एहसास न हो।
नहीं जरूरत इन सुबहें की,
जिनमें उजालों का अभाव हो।
वो उन्नति क्या उन्नति,
जिसमें अवनति का प्रभाव हो।
नहीं जरूरत उन नेताओं की,
जिनमें देशद्रोह का बाजार हो।
नहीं जरूरत इन भीड़ो की,
जिनमें दंगों की आवाज़ हो।
नहीं जरूरत इन पहचानों की,
जिनमें कायरता का एहसास हो।
नहीं जरूरत इन शामों की,
जिसमें कोयल की कूक न हो।
नहीं जरूरत उन सरकारों की,
जिनमें भ्रष्टाचार का व्यापार हो।
नहीं जरूरत इन अपनो की,
जिनमें अपनों का एहसास न हो।
—-पंडित राजन कुमार मिश्र।
मन की भावनाओ का अच्छा चित्रण