लोग कहतें हैं ,कि हमारी किस्मत,
हमारी हाँथ की लकीरों से बदलती है ,
कुछ यह भी कहतें हैं ,
कि हमारी किस्मत ,
हमारे कर्मों से ही है बनती हैं ,
हालांकि दोनों ही बातें,
अपनेआप में विरोधाभासी हैं।
वैसे लकीरें तो बंद मुठ्ठी में ही बनती है ,
किसी ने यह भी कहा है कि ,
बंद मुठ्ठी लाख की और ,
खुल गई तो खाक की ,
मगर हमारी मुठ्ठी तो कब की खुल गई है,
तो क्या हमारी किस्मत खाक की हो गई है?
वैसे लकीरें बनाना तो ,
हमारे बस में नही है ,
तो चलिये जो बस में है ,
वही करतें हैं,
अपने कर्मो से ही ,
अपनी किस्मत बदलतें हैं.
अपने कर्मो से ही ,
अपनी किस्मत बदलतें हैं.
बहुत अच्छी बात कही है “मंजूषा जी” आपने
अच्छे कर्मो से ही किस्मत बदल सकती है !!….
बहुत बहुत धन्यवाद आस्मा जी।
यथार्थ को जिवंत करती सुंदर रचना !!
बहुत बहुत धन्यवाद डी.के जी आपके प्रोत्साहन के लिए आपको।
मञ्जूषा जी कर्म की प्रधानता को दर्शाती सुन्दर रचना
Thanks a lot Shishir ji.