ग़ज़ल
हँस दे तो खिले कलियाँ गुलशन में बहार आए
वो ज़ुल्फ़ जो लहराएँ मौसम में निखार आए
मिल जाए कोई साथी हर ग़म को सुना डालें
बेचैन मेरा दिल है पल भर को क़रार आए
मदहोश हुआ दिल क्यूँ बेचैन है क्यूँ आँखे
हूँ दूर मैख़ाने से फिर क्यूं ए ख़ुमार आए
खिल जाएंगी ये कलियाँ महबूब के आमद से
जिस राह से वो गुज़रे गुलशन में बहार आए
जिन जिन पे इनायत है जिन जिन से मुहब्बत है
उन चाहने वालो में में मेरा भी शुमार आए
फूलों को सजाया है पलकों को बिछाया है
ऐ बादे सबा कह दे अब जाने बहार आए
बुलबुल में चहक तुमसे फूलों में महक तुमसे
रुख़सार पे कलिओं के तुमसे ही निखार आए
SALIMRAZA REWA 9981728122
सुन्दर प्रेम रचना……
आदरणीय मधुकर जी बहुत बहुत धन्यवाद