Homeघनानंदसोंधे की बास उसासहि रोकति सोंधे की बास उसासहि रोकति शुभाष घनानंद 25/02/2012 No Comments सौंधे की बास उसासहिं रोकत, चंदन दाहक गाहक जी कौ । नैनन बैरी सो है री गुलाल, अधीर उड़ावत धीरज ही कौ ॥ राग-विराग, धमार त्यों धार-सी लौट परयौ ढँग यों सब ही कौ । रंग रचावन जान बिना, ’घनआनँद’ लागत फागुन फीकौ ॥ Tweet Pin It Related Posts जासों प्रीति ताहि निठुराई क्यों हँसि हेरि हियरा सावन आवन हेरि सखी About The Author शुभाष Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.