क्यों तेरा नही कुछ भरोसा,
पल भर मे दगा दे जाये,
हमने तो न जाने कितने सपने देखे,
उन्हें पूरा करने के लिए जिए मरे ,
अपनों की आँखों मे वो उम्मीद भरी,
ज़िन्दग़ी भर उनका साथ देने का वादा किया ,
लेकिन ज़िन्दग़ी तेरा कोई भरोसा नहीं ,
जो कही भी कभी भी दगा दे जाती ह,
अब थोड़ा सा तो वक़्त दे मुझे,
थोड़ा संभलने दे ,सबको अलविदा तो कहने दे,
वो माँ जिसके अंचल से मे कभी दूर न हुआ ,
अब हमेसा के लिए उनसे दूर जा रहा हूँ ,
वो पिता जिसने पहला कदम मुझे चलना सिखाया ,
सब कुछ सहकर मुझे बुलंदियों तक पहुचाया ,
वो भाई वो बहिन जिनके साथ ने कभी गिरने न दिया ,
कभी गिरा भी तो मेरे दोस्तों ने आकर मुझे संभल लिया ,
सबसे हमेसा क लिए दूर जा रहा हूँ ,
पल भर क लिए थोड़ा जी लेने दे ,
सबको आखिरी अलविदा तो कहने दे…..
अच्छी कविता लिखी है शालू जी आपने !!!….