Homeघनानंदमीत सुजान अनीत करौ जिन मीत सुजान अनीत करौ जिन शुभाष घनानंद 25/02/2012 No Comments सवैया मीत सुजान अनीत करौ जिन, हाहा न हूजियै मोहि अमोही। डीठि कौ और कहूँ नहिं ठौर फिरी दृग रावरे रूप की दोही। एक बिसास की टेक गहे लगि आस रहे बसि प्रान-बटोही। हौं घनआनँद जीवनमूल दई कित प्यासनि मारत मोही।। 9 ।। Tweet Pin It Related Posts राधा नवेली सहेली समाज में घनआनँद जीवन मूल सुजान की भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति About The Author शुभाष Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.