तू कलम है अगर तूलिका मैं बनी,
तूने जो भी कहा भूमिका मैं बनी,
प्रेम के इस अनूठे सफ़र में प्रिये
कृष्ण है तू मेरा राधिका मैं बनी,
तू कलम है ,,,,,,,,
साथ हूँ मैं तेरे तू जहाँ भी रहे
सारे सुख – दुःख सदा साथ मिलके सहें
ह्रदय से हृदय हों मिलें इस तरह
दर्द हो ग़र तुझे अश्रु मेरे बहें
प्रेम है साधना ,साधिका मैं बनी
तू कलम है,,,,,,,
मिलने और बिछड़ने का भय भी नहीं
स्वर ,ताल ,छंद, साथ लय भी नहीं
प्रेम की ध्वनि पवित्र गुंजित हो उठी
तू ही तू हर जगह “मैं” नहीं हूँ कहीं
शब्द है तू मेरा लेखिका मैं बनी
इस तरह से तेरी प्रेमिका मैं बनी
तू कलम है अगर तूलिका मैं बनी
………सीमा “अपराजिता “
प्रेम के प्रति समर्पण का सुंदर चित्रण, शब्द संयोजन भी प्रभावशाली है !! बहुत अच्छे सीमा !!
वाह सीमा जी आपने तो अर्धनारीश्वर के दर्शन को अपनी कविता में समेट दिया. आज के भौतिकतावादी संसार में आपके प्रेम के प्रति इतनी गहराई युक्त सोच के लिए प्रणाम
क्या कहूँ शब्द ही नही मिल रहे सीमा जी। अनुपम रचना है।प्रेम की ही भांति पावन।
आप सभी का बहुत -बहुत आभार ,,,,,
वाह्ह्ह्ह् क्या कहने बहुत सुन्दर रचनी