गरीबों को दो वक्त की रोटी से मतलब है।
इन्हें मजहब के नाम पर मत लड़ाओ।।
ज़मीर तेरा भी नहीं राज़ी होगा इस कत्लेआम के लिए।
अपने ईमान को थोड़ा तो जगाओ।।
किस को मिली है कामयाबी नफरत फैलाकर।
अगर दामन में मोहब्बत है तो जी खोलकर लुटाओ।।
गरीबों को दो वक्त की रोटी से मतलब है।
इन्हें मजहब के नाम पर मत लड़ाओ।।
हर तरफ खुशियां फैलाना कोई नामुमकिन काम नहीं।
अपने होठों पर एक खूबसूरत मुस्कान तो लाओ।।
यह मुल्क़ हम सबका एक घर ही तो है मोबीन।
इसकी शान की खातिर हर ज़ख्म जिस्म पर सह जाओ।।
गरीबों को दो वक़्त की रोटी से मतलब है।
इन्हें मज़हब के नाम पर मत लड़ाओ।।
बहुत खूबसूरत भावनाए डॉ. मोबीन. यही वास्तव में शांती का मार्ग है.
ऐसी हौंसला अफ़ज़ाई के लिए आप का हमेशा से शुक्र गुजार हूँ।।। शुक्रिया शिशिर जी।।
बहुत ऊँची बात कह दी आपने डॉ. साहब.
शुक्रिया जी।।।।।।।।
बस इतना कहूँगा डॉ. मोबीन :
काश दुनिया को छोटी सी ये बात समझ आ जाये
मिटा के नफरत जहन से, प्रेम की गंगा बह जाये !!
Ji D.K.JI. AAZ NAHI TO KAL SAB KO AISI SOCH LANI PAREGI….
Well said Dr Mobeen. काश यह सोच लोगों में जल्दी आए ।
Shukriya aapka is hausla afzayi ke liye..
शुरुवात हो ही चुकी है।।
इमारत बुलंद बनेगी।।।
एक-एक करके हर शख्स पिघलेगा।।
पत्थर दिल वालों की भी सोच बदलेगी।।।
वाह्ह्ह्ह्ह् बहुत खूब
Shukriya zanab…