छोटी-सी सुंदर नाजुक कलियाँ
फूलों सी मुसकाती हैं
पर हर रोज वह किसी तरह से
पैरों से कुचली जाती हैं।
बात करूँ मैं उन फूलों की
जो रातों को न सोती है
हर पल, हर दिन डरती हैं
पर हमसे कुछ न कहती हैं।
आँसू आते हैं आंखों में
जब कली कोई भी रोती है
बेदर्दी इस समाज में आज
वनमाली क्यों कोई न होता है।
जब-जब वह हँसती है
बगिया सुंदर हो जाती है
और जब भी वह रोती है
बगिया मुरझा जाती है।
समझे न वह इस दुनिया को
अभी तो कली वह नाजुक है
और नाजुक-सी ही हालत में
रस्ते पर वह घूम रही है।
भीड़ो मे वह गुम हो जाती
आते-जाते ठोकर खाती
तब मुसकाती इन कलियों की
रंगत एक पल में उड़ जाती।
छोटी-सी सुंदर नाजुक कलियाँ
फूलों-सी मुसकाती हैं
पर हर रोज वह किसी तरह से
पैरों से कुचली जाती हैं।
-संदीप कुमार सिंह
Very good thought . This is true picture , very well said.
धन्यवाद सर।
प्रयत्न जारी है अभी
सामाजिक में नारी परिदृश्य का चित्रण करती अच्छी रचना , अति सुंदर भाव प्रस्तुत किये है !
धन्यवाद सर
उम्मीद करता हूँ किआगे भी लिख सकूँ