Homeघनानंदघनआनँद जीवन मूल सुजान की घनआनँद जीवन मूल सुजान की शुभाष घनानंद 25/02/2012 No Comments ’घनाआनँद’ जीवन मूल सुजान की , कौंधनि हू न कहूँ दरसैं । सु न जानिये धौं कित छाय रहे, दृग चातक प्रान तपै तरसैं ॥ बिन पावस तो इन्हें थ्यावस हो न, सु क्यों करि ये अब सो परसैं। बदरा बरसै रितु में घिरि कै, नितहीं अँखियाँ उघरी बरसैं ॥ Tweet Pin It Related Posts सावन आवन हेरि सखी पकरि बस कीने री नँदलाल हीन भएँ जल मीन अधीन About The Author शुभाष Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.