“
यह व्यंगात्मक कविता उस समय लिखी गयी थी जब देश में मंडल और कमंडल आन्दोलन अपनी चरम सीमा में था,
पूरा देश इसकी चपेट में था, सारी राजनिती पार्टियाँ
अपनी अपनी राग अलापने में लगी थी,
किसी को अपनी देश की चिंता नहीं थी,
हमारा “भारत महान” इसकी आग में जल रहा था,
यह हमारा दूर्भाग्य है की हम आज भी इस आग से उबर नहीं पाए हैं I
इस छोटी सी कविता में जो भी नाम लिए गयें हैं, वो अपने समय के महान और चर्चित नेता रहें हैं,
और विडिम्बिना देखिये, सारे के सारे नाम ईश्वर के नाम हैं
————————————————————————————————–
ॐ नमः स्वाहा”
—————————————————-
राम, विश्वनाथ
“मंडल”
मुरली, कृष्ण
“कमंडल”
नरसिम्हा, शंकर
मस्जिद, मंडल और कमंडल
“पाक मस्जिद”
अल्लाह हो अकबर
मंडल, कमंडल
और हिंदुस्तान
ॐ नमः स्वाहा, ॐ नमः स्वाहा, ॐ नमः स्वाहा
——————————————————————————–