सूरज की किरणें का स्पर्श
खो गया निशा का उत्कर्ष
मधुर मयंक ने ली अंगड़ाई
अमावस की बेला भी पराई
प्रभात के खुले आरोहण में
तटों पर लहरें जब लहराई
याद प्रियतम तुम्हारी आई,
हृदय की ऊंची गहराईयों में
वनों की फैली परछाईयों में
पक्षियों ने गीत मधुर गाया
कल्पनाओं का राग सजाया
शीतलहर भी लौट घर आई
मेघों की आंखे जो भर आई
याद प्रियतम तुम्हारी आई,
झरनों का झरता झर जल
नदियां भी बहती कल कल
धरा श्रृंगार कर दी मुस्काई
पथिक राह में जो दूरी आई
सागरों ने भी सीमा फैलाई
नाविकों की हुई जब विदाई
याद प्रियतम तुम्हारी आई।
…………… कमल जोशी
प्रियतम से विरह का सुन्दर चित्रण।