सागर जितना खारा है उतनी ही गहरी खाई है.
दर्द समेटा दुनिया का, पहलू में पीर पराई है.
जिसको मिलता है मान, वही बौराता है.
भरा उदर ही , स्वयं गीत बन गाता है.
सरिता उफन रही, पाकर के नीर अपार.
अनसुना सा कर रही कातर करुण पुकार.
इस पल जो ये उन्माद गरल पी जाता है.
गरल-पान कर वो ही सागर कहलाता है.
गंगा धर शर्मा “हिंदुस्तान”