एक टूटा हुआ सितारा हूँ।
बाब-ए-गर्दिश का मारा-मारा हूँ।।
न मिला आशियाँ कहीँ भी मुझे।
जो बिखर जाए मैँ वो धारा हूँ।।
चाहे ठुकरा दे या क़बूल तू कर।
मैँ तो जैसा भी हूँ बस तुम्हारा हूँ।।
कोई देखे भी क्योँ मेरी जानिब।
मैँ तो सुनसान इक नज़ारा हूँ।।
मौत से ज़िन्दगी हुई बदतर
ज़िन्दगानी का एक हारा हूँ।।
क्या अलू शायरी का जाने तू।
इक गदा और मैँ आवारा हूँ।।
जिस मेँ कोई तपिश न हो ‘नूरी’।
मैँ वो बुझता हुआ शरारा हूँ।।
(C) परवेज़’ईश्क़ी’
nice one……………!!
Thankyou D.K. Jee