कुछ और देर …
रहने दो कुछ और देर
मुझे मेरे ख्वाब के साये तले
उसकी परछाँई से बात कर लूँ
बस, कुछ और देर ।
बहने दो कुछ और देर
बुलाते हैं इश्क़ के ज़लज़ले
उसके लफ़्ज़ों में भीग लूँ
बस, कुछ और देर ।
सिसकने दो कुछ और देर
फिर हो जाएंगे फ़ासले
उसके काँधे पे सर रख लूँ
बस, कुछ और देर ।
— स्वाति नैथानी
युवा मन की भावनाओ का संजीव चित्रण. पढ़कर अच्छा लगा
शुक्रिया शिशिर जी
अंतर्मन की भावनाओ को अच्छे शब्दों में प्रस्तुत किया … बहुत अच्छे स्वाति !!
धन्यवाद डी के जी….