चन्द खुशियों की खातिर बसाया था जो एक जहान ।
चन्द खुशियों के लिए आज बेच आया हूँ वो मकान ।।
हर एक शै मैं उठा लाया हूँ वैसे तो वहां से ।
छोड़ आया हूँ मगर अपने बचपन के कुछ निशान ।।
ज़िन्दगी भी अब तो यहां बस सेहरा है रेत का ।
बहता था वहां रोज़ खुशियों का आब-ए-रवान ।।
महफ़िलों औ तक़रीबों के चलते थे दौर भी ।
आते थे उस घर में मेरे दोस्त और मेहमान ।।
वो घर नहीं था मेरा बाग़-ए-बहार था ।
यादों में आज भी है उस घर की हर एक शाम ।।
बुज़ुर्गों के साये में मैं मेहफ़ूज़ था वहां ।
वो घर नहीं था ‘आलेख’ था मेरा बागबान ।।
— अमिताभ ‘आलेख’
शै = [ thing, वस्तु ]
आब-ए-रवान = [ running water, spring ]
तक़रीब = [ festival ]
अत्यंत खूबसूरत रचना आलेख. उर्दू शब्दों का अर्थ साथ साथ बताने के लिए भी शुक्रिया
अनेक धन्यवाद शिशिर जी.
बहुत अच्छी रचना है आपकी अमिताभ जी !!
शुक्रिया आसमा जी.
शानदार ग़ज़ल अमिताभ जी, प्रथम शेर हृदय को छूता हुआ बहुत प्रभावशाली है !!
बहुत धन्यवाद धर्मेन्द्र जी.