सूर्य किरणों का रथ हांकने
भोर का सारथी व्याकुल
कुमुदिनि लगी गगन तांकने
भ्रमर समूह हुआ आतुर,
पथ में पक्षी पथिक हुऐ
संग उनके कृषक रसिक हुऐ
वृषभों की कदम ताल में
धरा कणिकाएं ज्वलित हुई,
मन्दिरों में शंखनाद गूंजा
प्रार्थना में जीवन सार मिला
हवन घंटों की ध्वनियों में
प्रभात में नवीन प्रभाव घुला,
अंधकार की विरक्ति से
मुक्त हुआ निर्भीक मानव
प्रण रचता हर क्षण प्रतिबिम्ब
छल मात्र भाव में दानव,
ज्ञान का अर्थ पर्वतों में
निश्छल बहता सरितों में
निरंतरता हुई साक्षी
स्थिर वाटिका के मूलों में,
परिवर्तन मानव स्वभाव
खोज रहा मन के अभाव
भेद ना पाया अभिमानों को
प्रकृति ने भी बदला भाव,
मंगलकामना द्रवित हृदय की
धरा जन वाणी ना हो आघात
खोज मधुर संगीत का संगम
जन गण मन करें सुप्रभात,
……………. कमल जोशी
प्राकृतिक सौंदर्य का उम्दा चित्रण…. बहुत अच्छे शब्द दिए है “कमल” ने रचना को !!