कुछेक पंद्रह सोलह साल पहले की ही बात है ,
मेरे डॉक्टर ने कहा था ,
मैडम आपका हार्ट एनलार्ज है ,
इलाज करवा लीजिये,
भविष्य में समस्या हो सकती है
मैने सोचा हार्ट एंलार्जेमेंट ,
तो कोई बीमारी नहीं लगती है ,
मेरे पापा का भी हार्ट बहुत लार्ज था ,
तो मेरा भी हार्ट एनलार्ज होना ही था ,
अगर यह कोई बीमारी है तो,
वीह तो हमारे जींस से मिली है।
और बात आई गई हो गई ,
इसी बीच हमारे उन बुजुर्ग डॉक्टर का ,
स्वर्गवास भी हो गया ,
यूँ ही बैठे बिठाये ,
कुछ दिन पहले ,
मुझे अपनी उस बीमारी का ,
ख्याल आ गया।
हार्ट एनलार्ज
,गर मेरा था ,
तो मुझे कोई समस्या ,
क्यों नहीं हुई?
मेरा,अपने उन डॉक्टर पर,
अपार श्रद्धा और विश्वास था।
मैं इस बात से बहुत ही हैरान हूँ ,
क्युकि आज जब ,
तरह तरह की बीमारियां ,
मेरा पता पूँछ पूँछ कर ,
बिन बुलाये मेहमान की तरह ,
आ धमकती हैं। ,
तो क्या हुआ मेरी उस ,
बीमारी को ?तो
क्या वोह अपने ,
आप ही ठीक हो गई?
या मेरा दिल ही समय के साथ ,
कुछ छोटा हो गया है।
मञ्जूषा आज के जीवन का कड़वा सच आपने कविता में बड़ी खूबसूरती से लिख दिया. बहुत खूब
आपकी तो मै तहे दिल से आभारी हूँ शिशिर जी, क्युकि जब बहुत सालों बाद मैंने कविताएँ लिखना फिर से शुरू किया और अपनी पहली कविता “मेरी भावनाए”जो पब्लिश की उस पर पहला उत्साहवर्धक कमेन्ट आपका ही था। बहुत बहुत धन्यवाद आपका शिशिर जी ।
व्यंग के माध्यम से सच्चाई का अवलोकन बड़ी खूबसूरती से किया, ……बहुत अच्छे मञ्जूषा !!
यह कोई व्यंग नही है डी.के जी मेरे जीवन की बिलकुल सच्ची घटना है। वैसे अपने भूले हुए हार्ट एनलार्ज का ख्याल कुछ दिनों से आ तो
रहा था लेकिन कल जब अचानक मेरी सहेली के हार्ट के ऑपरेशन की बात सुनी तो अपनी उस बीमारी का ख्याल हो आया और फिर
यह कविता लिख डाली। आप लोगों के कमेंट्स से वाकई मुझे बहुत ज्यादा प्रोत्साहन मिलता है। बहुत बहुत धन्यवाद।