१५ अगस्त १९४७ से मेरा भारत स्वतंत्र है
२६ जनवरी १९५० से यहाँ पूर्ण प्रजातंत्र है
प्रजा ही यहाँ बार बार अपना शासक चुनती है
और एक शांत विकसित देश का सपना सदा बुनती है
देश में चारो तरफ मगर जो आज हाहाकार है
दोष औरों का नहीं ये प्रजा इसकी जिम्मेदार है
जाति, धर्म और क्षेत्र से आगे ना ये बढ़ पाई है
हिन्दू, मुस्लिम,सिख,ईसाई बस नारों में भाई भाई हैं
आपसी विमर्श में सदा बेतुकी बात ये करती है
कोई सही बात इसके भेजे में ना भरती है
सबको मुफ्त शिक्षा की ये कभी बात ना करती है
बिन दवाई और अस्पतालों के कष्टों में ये मरती है
कितना भी इसे समझाओ जनसंख्या मत बढाइये
हर हाल में इसे तो बस सस्ती सब्जी, दाल चाहिए
राजतंत्र में जैसा राजा वैसी ही प्रजा भी होती है
प्रजातंत्र में सत्ता मगर इसके चरित्र का आईना होती है
जब तलक जहालत से ये देश पीछा ना छुड़ाएगा
कितनी भी कोशिश कर लो तुम परिवर्तन न कोई आएगा.
शिशिर “मधुकर”
बहुत बढिया ‘शिशिर ‘जी…!!
प्रिय अस्मा, आपका बहुत बहुत शुक्रिया
हमें अपने अन्दर झांककर देखने को प्रोत्साहित करती रचना …………स्वागत योग्य ….
उत्कृष्ट
धन्यवाद सुशील. वास्तव में रचना हमारे अपने मन को झकझोरने के लिए ही लिखी थी. काश हम अपनी गलतियों को जल्दी सुधार सकें
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
गिरिजा जी पीड़ा की पहचान के लिए दुष्यंत कुमार जी की रचना उद्घत करने का शुक्रिया. इससे सुन्दर तारीफ़ नहीं Ho सकती.धन्यवाद
समाज को आइना दिखती सत्यपरक रचना, बहुत अच्छे शिशिर जी !!
बहुत बहुत आभार निवातियाँ जी
बहुत सही और सटीक, शिशिर जी
बिमला जी मन की व्यथा के उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार.
बहुत ही अच्छी रचना शिशिर जी …पर हमें यह समझना होगा की कोई भी देश किसी राजनेता ,ऑफिसर से नहीं बदल सकता देश को बदलने के लिए हमें खुद की सोच को बदलना होगा ..हम बदलेंगे तो ही देश बदलेगा ..
आपने बिल्कुल सही कहा ओमेन्द्र जी. इसी उधेड़बुन के कारण ही तो इस रचना का सृजन हुआ है. मैं तो शासको को उलाहना देने के स्तर पर प्रजा को ही इसका जिम्मेदार मानता हूँ जो अपने अल्पावधि के फायदे के लिए सही, गलत, नैतिकता. अनैतिकता इत्यादि सब भूल चुकी है. भारत में जाति और धर्म के नाम पर बने असंख्य वर्गों के बीच फैले वैमनस्य में मुझे तो अब किरण की उम्मीद धूमिल होती लगती है. फिर भी आशावादी होने में कोई बुराई नहीं है.
Good
बहुत बहुत आभार चनद्रभूषण जी
आदरणीय शिशिर जी ! आपने एकदम सही फरमाया देश की आज जो भी दशा है वोह जनता की नासमझी ,अज्ञानता ,लापरवाही और स्वार्थपरता की वजह से है. जनता यदि जागरूक हो जाये ,और उसे अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का बोध हो जाये तो कैसे ना देश का विकास हो. क्यों वोह झूठी ,मक्कार , स्वार्थी ,सत्ता के लालची राज नेताओं के मक्कड़-जाल में फंसकर अपना और देश का सत्यनाश करवाए. जबकि योग्य ,सच्चा ,कर्तव्य -निष्ठ ,इम्मंदार नेता चुनना इनका मौलिक अधिकार है.