जिस आईने में तेरा चेहरा देखा करता था
तुम्हें अपनी निगाहों में उतारा करता था
उस आईने को बेवफा तेरे पत्थर तोड़ गये
अनजानी राहों में बेदर्द अपने सितम छोड़ गये।
बेवफा तेरी तस्वीर बसी है दिल में लेकिन
इन हाथों से उसे कागज पे उतारूं कैसे
एक रंग है जिन्दगी में बाकी हो गये खत्म
एक रंग से तेरा चेहरा संवारूं तो कैसे।
दूर आसमां में सितारे तो चमक रहे हैं
हम तेरे शहर की गलियों में बिखर रहे हैं
हजारों सितारों की रोशनी भी है नाकाफी
ऐसे में तेरे घर की दीवारों को ढूंढे तो कैसे।
हर गुलशन में हमने तेरे कदमों के निशां चूमे
हर फूलों से तेरी मोहब्बत के सजदे सुने
पर शायद जकड़ा है मजबूरी ने तेरे हाथों को
ऐसे में तेरी इनायत में फूल पेश करें तो कैसे।
…………………………….. कमल जोशी
धन्यवाद बहुत खूब
अतिसुन्दर………….. !!