मुद्दतों बाद आज अंगने में मेरे
बरसात हुई ,
भीग गया तन -मन मेरा
मैं छुई -मुई की
डाल हुई ,
मुद्दतों बाद …..
थी धरा प्यासी मैं मुद्दत से
बनकर बादल वो छाये हैँ
जाने कितना वक्त लगा पर
शुक्र है कि वो आये है
उनकी बाहों में जब सिमटी
तो फिर से सुहागन
रात हुई,
मुद्दतों बाद….
उनके प्यार की झिलमिल बूँदे
लबों पे मेरे गिरती जाती
अँखियों के मोती भी झरते
दिल की कलियाँ खिल -खिल जाती
आज बना है वो मयकश और
मैं मदिरा का पात्र हुई,
मुद्दतों बाद……सीमा “अपराजिता “
अद्भुत रचना श्रृंगार एवं विरह से परिपूर्ण। बहुत सुन्दर अपराजिता जी
धन्यवाद बहुत खूब, सुन्दर प्रयास आप लिखते रहें
सीमा श्रृंगार, प्रेम एवं मिलन के सुख को प्रदर्शित करती बेहतरीन कविता.
बहुत -बहुत धन्यवाद आप सभी का ,,,