बेचकर जमीर को तू कोई काम न कर |
मिलकर अमीर से तू कभी नाज़ न कर |
किसी बलवान का साथ दो या न दो ,
पर दुखिया का दिल तू दुखाया न कर |
माता – पिता और गुरु उन सभी को ,
कभी भी यहाँ तू रुलाया न कर |
अपनी ख़ुशी को तुम बाँटों हमेशा ,
गम को कभी तू सुनाया न कर |
माँगना है माँग ले परवरदिगार से ,
सर आदमी के द्वार तू झुकाया न कर |
सच के साथ कर्म को करते रहो सदा ,
दूसरों की भावना का अपमान न कर |
जिन्दगी के मधुर लम्हें याद रखो तुम सदा ,
पंकज सभी रिश्तों को अब बदनाम न कर |
आदेश कुमार पंकज
अच्छा लिखा है पंकज.
इतने पर भी ,
मनुष्य को
कहाँ होता है संतोष |
और
कर देता है चूर – चूर ,
भाग्य का सर्व नाश |
जब – जब खिलता है ,
पलाश !
there appears to be some omission in the above lines
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