Homeअज्ञात कवि“माँ” “माँ” virendra अज्ञात कवि 26/11/2015 3 Comments तू वह नीव ह जिसपे आज मेरी मुस्कराहट कड़ी ह , तू वह आँख ह जिससे मैने सपने देखे ह , तू वह उम्मीद ह जिसपे आज मेरे हौसले खड़े ह , तू वह वक़्त ह जो मझे सिर्फ बचपन दिखाता ह !!!! Tweet Pin It Related Posts इश्क की धुन ज्योतिर्लिंग – बी पी शर्मा ( बिन्दु ) ख्वाहिश यादों की About The Author virendra 3 Comments asma khan 26/11/2015 बहुत खूब………….. Reply निवातियाँ डी. के. 26/11/2015 सदैव की तरह बस इतना कहूँगा माँ सर्वोपरि है, अतुलनीय है, उसकी अभिव्यक्ति शब्दों में नही की जा सकती ! Reply Manjusha 26/11/2015 मैं तो बस इतना कहना चाहूंगी कि आपकी कविता बहुत ख़ूबसूरत और दिल को छूने वाली है। आज भी कुछ लोगोँ के लिये माँ पूरा संसार होती है। Reply Leave a Reply Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
बहुत खूब…………..
सदैव की तरह बस इतना कहूँगा माँ सर्वोपरि है, अतुलनीय है, उसकी अभिव्यक्ति शब्दों में नही की जा सकती !
मैं तो बस इतना कहना चाहूंगी कि आपकी कविता बहुत ख़ूबसूरत और दिल को छूने वाली है। आज भी कुछ लोगोँ के लिये माँ पूरा संसार होती है।