सहिष्णुता क्या असहिष्णुता
बूझ न पाया मन कैसी व्यथा
स्वतंत्रता का यह भावार्थ या
पराधीनता की पुरानी कथा,
वो हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
याद नहीँ शायद कहते भाई
प्रगति के पथ पर ज्ञान कहाँ
लोकतन्त्र की हुई जगहंसाई,
राजनीति की अवसरवादिता
नवयुग की यह कैसी बाध्यता
तिरस्कार मॆं हुई वह जो धूमिल
सुसंस्कृत ऐतिहासिक सभ्यता,
धर्म को जोड़ गये वो महात्मा
कुछ अज्ञानी और ऊँचे विज्ञानी
प्रकाश पथ पर अन्धकार फैला
सिक्कों की खन की यह सूनामी,
विचारधाराओं के विचित्र पन्ने
लिख रहे अदभुत ऋण अंगार
मौसम का अकल्पनीय उपहार
साहित्य का कैसा मार्मिक श्रृंगार,
शहीद स्मारक की अमर ज्योति
या चलचित्रों की कहानी रोती
सत्य असत्य का सार ना पाया
व्यथित जनवाणी समय खोती,
हलचलों ने पांव पसारे ये प्रथा
सहिष्णुता है या असहिष्णुता
शब्दार्थो ने रची भयावह कथा
बूझ रहा मन किसकी व्यथा,
…….. ….. …… कमल जोशी
अति सुन्दर …………………… !!
बहुत खूब………..!