कहता है खुद को खलीफा ओ दरिन्दे ……
शैतान है तू और, जालिम है तेरे कारिंदे |
कहते हो खुद को खुदा का रहनुमाई ,
करते हो हरकदम बदी से तुम आशनाई |
जिसके खून से तू वजू करता खलीफा ,
है नही वो गैर , तेरे अपने वासिंदे |
बमों-बन्दूक के साए में ,
क्या कोई मजहब पनपता है |
लाशों से पटी धरती पर ,
बस नफरत सुलगता है |
सरे बाजार तू अपनी औरतें नीलाम करता है ,
बना मासूम को फिदायी ,कौन सा जेहाद करता है |
कसम खाई है तूने की ,
मिटा देगा तू काफिर को –
वो भी पक्का नमाजी था जिसे पिंजरे में भूना था |
तू तो खुद भी मुआज्जिन था उसी मीनार का पगले ,
जहा से आज कत्लेआम का , तू खुद फरमान देता है …………..
सच कहा सुशील जी….!
लाशों से पटी धरती पर ,
बस नफरत सुलगता है |
किसी की हत्या को कोई सही नहीं कहा सकते ……….
अच्छा लिखा है
धर्म के नाम पर हो रहे अत्याचार पर सटीक व्यंग