गुलज़ार कहते है
खुशी फूलझड़ी सी होती है
रोशनी बिखरती झट से खत्म हो जाती है
दर्द देर तक महकता है
भीतर ही भीतर सुलगता है
उसकी खुशबू जेहन में देर
तक रहती है
ख़ुशी को भी हम
दर्द भर कर अहा से याद करते है
क्योंकि दर्द ही देर तक ठहरता है
दर्द यादों में जम जाता है
पिघलता है आंसू बन
कभी हंसी में बिखर जाता है
क्योंकि दर्द ही देर तक ठहरता है
दर्द का विश्लेषण करती सत्यपरक रचना, बहुत खूब रिंकी !!
Thanks for your appreciation.
ख़ुशी और दुःख मनुष्य के अंतर में सदैव द्वन्द करते है , इस बार दर्द को शब्द मिले है अगली बार ख़ुशी की बारी है …………. सुन्दर अभिव्यक्ति ……….
सुशिल जी, ख़ुशी तो फूलझड़ी है हमेशा मन में जलती है, धन्यवाद
दर्द को परिभाषित करती एक सार्थक कविता के लिए धन्यवाद।
गुरप्रीत, बहुत आभार
जिंदगी के दो पहलूओ को समझाने वाली कविता है रिंकी जी !!!!!…
आसमा सुदर शब्दों के लिए आभार
रिंकी बहुत उत्तम रचना. इसी दर्द का परिणाम तो रचनाकारों की सूची है.
आगे लिखने की प्रेरणा देती है