तुम्हारी यादों ने खाई खोद डाली है पाषाणों से दिल पर
प्रपात बन कर बह निकलती है मुंडेरों से आँखों के
मन उद्वेलित हो जाता भावनाओं के बवंडर में
जब शोर करते हैं बिछड़े पल वो अरमानों के
दिल शकुन में नहा जाता है उस निर्झर के छींटों से
हर बूँद जिसकी भीगी हुई होती है तेरी मीठी बातों से
हर शाम जब भी तूफान गहराते हैं जीवन के नाव में
सुस्ता लेता हूँ कुछ देर यूँ ही उस निर्झर के छाँव में
यादों ने खाई खोद डाली है पाषाणों से दिल पर very sentimental.
uttam tekriwal ji ki sabhi rachnayen meine padhi hain , is lekhak ki har kavita nirali aur dil ko choo lene wali hai ….
mein salam karta hoon uttam tekriwal ji ko……
aur nivedan karta hoon ki isi prakar achhi achhi rachnayen hum tak pahunchate rahein….
vijay jain
कितनी धारदार यादें है उत्तम जी जिन्होंने उत्तम जी पाषाण में भी खाइयाँ खोद दी है. बहुत सुन्दर गहरे प्रेम से ओतप्रोत रचना.
भाषा शैली में उत्तम जी उत्तम ही नही सर्वोत्तम है !!