मै हूँ इँदिरा , मै हूँ सीता, मै ही दुर्गा कली हूँ ………..!
तोङ पुरानी बेङियो को आज नयी कहानी हूँ………!
मै नही पुरानी हूँ , मै आज की ही नारी हूँ…….!
तोङ जमाने की रस्मो को आज नयी रवानी हूँ……….!
मै सीता हूँ , मै हूँ इँदिरा, मै ही दुर्गा काली हूँ…….!
मै नदियाँ सी , मै चंचल सी, मै ही बहता पानी हूँ………!
मै माता ,मै ही ममता , मै ही जग की जननी हूँ………!
आशिमा जी, बहुत सुंदर एवं प्रभावी रचना है इसको और विस्तृत करने की आवश्यकता है !
नारी सर्वस्व है ये जानते हुए भी पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता को अभी तक ये स्वीकार्य नही है !
निवातियाँ जी अपको हमारी रचना पसँद आई धन्यवाद……….!