मैने गणतंत्र दिवस पर अपनी कॉलोनी में बच्चों के लिए दौड़ प्रतियोगिता का आयोजन
कुछ सालों तक किया था और निम्नलिखित कविता भी उसी मौके पर बच्चों को सुनाने
के लिये लिखी थी , मगर उन्हे कभी सुना नहीं पाई।
पेश है मेरी वह उनसुनी कविता :-
मेरा सपना
मेरा सपना जो खो गया था कहीं ,
नन्ही आँखों में फिर से देखा यहीं ,
मेरा सपना जो खो गया था कहीं ,
रहने दो तुम अपने पास युहीं ,
कि सपने देखने की मेरी उम्र नहीं ,
मेरा सपना तो अब तुम्हारा है।
मेरा सपना तो अब तुम्हारा है,
मेरा सपना जो अब तुम्हारा है,
उस एवज में मुझ से वादा करो।
देश में नाम तुम कमाओगे,
माँ बाप की शान तुम बढ़ाओगे,
चार्मवुड का चार्म बन कर छाओगे।
जैसे हम सपनों को भुला बैठे ,
तुम उन्हे भूल तो न जाओगे,
मेरा सपना जो खो गया था कहीं।
मेरा सपना जो खो गया था कहीं ,
नन्ही आँखों में फिर से देखा यहीं ,
मेरा सपना जो खो गया था कहीं।
प्रेरणा दायक कविता ।
विमला जी आप लोगों की इस तरह की टिप्पणी से ही वास्तविक प्रेरणा मिलती है , वरना तो संपादकों द्वारा अभिवादन और खेद सहित वापस
लौट आई कविताओं के बाद मैने लिखना ही छोड़ दिया था। हालांकि खाली यही एक कारण नही था मेरे नहीं लिखने का , कभी फुर्सत में फिर
चर्चा करूंगी इस पर। बस आज के लिए इतना ही।
अपने अधूरे सपनो को आनेवाली पीढ़ी में देखना और उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित करना मानव की सृजनात्मकता का प्रतीक है ! प्रत्येक व्यक्ति की ये प्रबल इच्छा होती है !! और विकास की घोतक भी !
बहुत अच्छे मंजूसा !!
आपकी अच्छी और सच्ची प्रतिक्रिया अपनी कविता के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।