Homeअज्ञात कविशायरी शायरी virendra अज्ञात कवि 21/11/2015 2 Comments मैं पूछ बैठा मोम से क्यूँ जलता है तू लौ के लिए, अपनी ज़िंदगी दफ़न करता है उसकी ऊँचाई के लिए , वो बोला इसका जवाब अपने माँ बाप से पूँछ, क्यूँ हर वक़्त पिघलें है वो तेरी मुस्कान के लिए ।। Tweet Pin It Related Posts पहचान पाना – अनु महेश्वरी माँ मेरी माँ……….लैजेंट ऑफ़ फैन भगत सिंह 2016 पेड़ के पत्ते – बी पी शर्मा बिन्दु About The Author virendra 2 Comments निवातियाँ डी. के. 21/11/2015 बहुत गहरी बात कह गए जनाब ……..अति सुन्दर !! Reply asma khan 23/11/2015 बहुत खूब………….! virendra ji Reply Leave a Reply to asma khan Cancel reply Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.
बहुत गहरी बात कह गए जनाब ……..अति सुन्दर !!
बहुत खूब………….!
virendra ji