हे छठ मैया ,
मुझको दे दो आशीर्वाद |
खड़ा हूँ तेरे द्वारे पर ,
आस लगाये दर्शन की |
कारज मेरे पूरे कर दो ,
विनती तेरे आसन की |
जीवन मेरा सफल करो माँ,
कर दो दुनिया को आबाद |
हे छठ मैया ,
मुझको दे दो आशीर्वाद |
भक्तों को खुशियां देती हैं ,
झोली उनकी भरती हैं |
एक लोटे के जल में तू ,
स्वयं समाहित होती है |
बन निज भक्तों की रक्षक ,
दूर करो उनका अवसाद |
हे छठ मैया ,
मुझको दे दो आशीर्वाद |
उगते सूरज और डूबते ,
दोनों में सुख देती है |
सभी कष्ट जीवन के तू ,
छठ मैया हर लेती है |
जीवन में जगमग हो मेरे ,
खाकर खरना का परसाद |
हे छठ मैया ,
मुझको दे दो आशीर्वाद |
पान – सुपारी ध्वजा नारियल ,
फल – फूलों को तुम्हें चढ़ाऊँ |
ठेकुओं का भोग लगाकर के ,
माँ सुन्दर गीतों को गाऊँ |
पंकज भक्तों की श्रेणी में ,
बन जाऊं मैं एक अपवाद |
हे छठ मैया ,
मुझको दे दो आशीर्वाद |
आदेश कुमार पंकज
पत्थर ना बन मेरे वास्ते,
आई मेरे ज़िंदगी के रास्ते.
क्या खाता हुई है मुझसे,
क्यों जुदा किया है अपनो से.
अरशे अर्मा के चिंगारी,
जल रहे इस दिल मे.
बुझ ना पाएँ जो कभी,
इन हवाओं के तूफ़ा मे.
चल रहें चलते रहेंगे,
मंज़िलों के रास्ते.
पत्थर ना बन मेरे वास्ते,आई
ज़िंदगी के रास्ते……………
ना कर फिकर मेरा सही,
कह दे तू उन नदियों से.
जहाँ जहाँ बहती जाए,
यह संदेश सुनती जाएँ.
इस ख़ुदग़रज़ई दुनिया मे,
अब और ना कोई राहगीर आवें.
अब और ना कोई
राहगीर आवें………………………..
Thanks for appreciation and for good poem.