मेहनत से बना घोंसला
पल में क्यों तिनका हो जाये
फूल खिले जो सुबह को
शाम हवाओं के झोंके से
पंखुडि़यों में क्यों बिखर जायें
किस्सों की चादर
मेरी यूं ही हवा में उड़ती जाये।
जीवन में छाये क्यों निराशा
खो जाये क्यों हर आशा
सूरज छुप जाये बादलों में
रात का अंधेरा दिन में क्यों ठहर जाये
किस्सों की चादर
मेरी यूं ही हवा में उड़ती जाये।
पंछी उड़े करीब आसमान के
फिर क्यों अकेला पड़ जाये
नदियों का शीतल जल
सागर में मिल खारा हो जाये
किस्सों की चादर
मेरी यूं ही हवा में उड़ती जाये।
………………… कमल जोशी
कृति का भाव अच्छा है, लेकिन शब्दों की अधिकतम अशुद्धियों से रचना अर्थहीन हो जाती है, कृपया सावधानी बरते !
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