मेरी ख्वाइशों से मेरे वक़्त का मिलना अभी बाकी है ,
मेरे कदमो से मेरी मंज़िल का रास्ता अभी बाकी है ,
अभी तो सफर की शुरुवात हुई है साकी ,
सब्र रख ,थोड़ा और मशहूर होना अभी बाकी है ||
अभी तो ज़िन्दगी के कार्यक्रम में मशगूल होना बाकी है ,
रिश्ते तो बने है अभी ,कबूल होना बाकी है ,
अभी तो सिर्फ आँखों से ऐतबार हुआ है ,
प्यार में , थोड़ा और मशहूर होना बाकी है ||
गरीबो की आँखों से अश्को का थमना अभी बाकी है ,
बचपन के सपनो का पकना अभी बाकी है ,
रूठी हुई है मासूमियत कियूं इंसानो से ,
इंसानियत में थोड़ा मशहूर होना अभी बाकी है ||
माँ बाप के अरमानो का पूरा होना अभी बाकी है ,
इस अंद्विश्वासी आस्था का खोना अभी बाकी है ,
सिलवटे सर से मिट त्ती नहीं आजकल ,
होसलो में थोड़ा मशहूर होना अभी बाकी है |||
Achchi rachna virendra ji..
dhanyawad 🙂 omendra
कमाल की कविता है भाई जी।
aapki dua bhaiji 🙂