चीज जो थी अपनी छुपा ली गयी है…..
चिरागों से लौ भी चुरा ली गयी है….
डालकर झोली में फ़क़ीर की सिक्का…
कुछ दुआएं जनाब उठा ली गयी है …..
सहर होगी मगर पहले जैसी नहीं…
रोशनी नई कुछ मंगा ली गई है….
शेर को धमकियाँ गीदड़ों से मिली है…
आरक्षण की मदिरा चढ़ा ली गयी है….
‘हिंदुस्तान’ तो प्यार का फलसफा है…
कहानी थी इतनी, सुना ली गयी है….
गंगा धर शर्मा ‘हिंदुस्तान’